हल्की हल्की गुलाबी
सिहरती ठण्ड ने
जैसे ही
दिसम्बर के कंधे पर
अपना हाथ रखा
कुछ कहानियाँ भी सिहर उठी
बीते मौसम की।
वो कहानियाँ
रोएँ रोएँ में
रूमानी कर रही थी।
सुबह के कोहरे में लिपटी हुई
यादों के स्वेटर पहने
नज़र आयी फ़िर कुछ निशानियाँ
बीते गुजरे मौसम की।
मखमली रज़ाई का
मखमली अहसास था
इन कहानियों में।
बदन को गुदगुदा दिया इन्होंने
रोएँ रोएँ में हलचल थी
कुछ ठण्ड की
और
कुछ कहानियों की।
ठंडी हवा के झौंके ने
जैसे ही छुआ
वो लबों की पहली छूअन
ताज़ा हो गयी ।
उसके सिल्क बाहों की नरमाहट
और
उसकी साँसों की
गरमाहट ने छू लिया।
दिसम्बर बीतता रहा
और कहानियाँ भी सिहरती गयी।
जैसे ही नए साल की आहट आने लगी
कहानियाँ भी ज़हन में दफ़न
और नयी कहानियों ने दस्तक दी।
मग़र
हर बार छू लेती है
दिसम्बर की कहानियाँ।
सिहर जाता है यादों का साया।
उफ़्फ़ दिसम्बर।
नीरज “मनन”
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