एक नयी कविता लिखी है आप सभी के सम्मुख रख रहा हुँ। अच्छी लगे तो comment ज़रूर कीजिएगा। आपके comments और likes हमें motivate रखते हैं लेखन के लिए।
प्रेमिका
मैं राधिका सी बनकर, अब कृष्णमयी हो गयी
मैं दिवानी प्रेम की अब, प्रेमिका सी हो गयी।
पिया का आलिंगन करके, प्रीतमय हो गयी
अधरों पर अधर रख, प्रेम संग खो गयी।
तुम बिन मैं नहीं और मुझ बिन तुम नहीं,
मछली बिन पानी जैसी, प्रीत मेरी हो गयी।
लम्हा-लम्हा मेरा दिल, तेरी और झुकता है,
पाने की इस चाहत में, जोगन सी अब हो गयी।
हाथ तेरा हाथ में और अधरों संग अधर हैं
साँसों में तेरे झूमकर, मैंमदमस्त हो गयी।
सत्य, सगुण और शाश्वत, प्रेम भाव की पूर्णता
प्रेम में तेरे बह-बहकर, अब सम्पूर्ण हो गयी।
प्रेम अलौकिक, प्रेम दिव्य, प्रेम आत्मा का रंजन,
प्रेम-प्रेम को पढ़ते-पढ़ते, स्वयं विसर्जित हो गयी।
नीरज “मनन”