दोस्तों आपसे वादा किया था आप सभी को आज दोस्ती पर एक कविता भेजूँगा। पेश है दोस्ती पर एक कविता का उपहार।🌹🌹🥰🥰

मेरे यादों की बस्ती में

कुछ दोस्त रहा करते हैं।

गुजरे लम्हों की गलियों में

कुछ ख़्वाब रहा करते हैं।

जीवन की आपा-धापी में

कोई इधर गया कोई उधर गया।

तब गुत्थम- गुत्थी होते थे

अब सुलझे- सुलझे रहते हैं।

उलझे से अब इस जीवन में

सुलझे- सुलझे से रिश्ते हैं।

मेरे यादों की बस्ती में

कुछ दोस्त रहा करते हैं

उस पल की वो बातें थी,

बातों में सपन सुहाने थे।

एक दूजे के कंधों पर,

हमने वो बस्ते टाँगे थे।

उन बातों की यादों में,

अव दोस्त रहा करते हैं।
ख़्वाबों को आँखों में लाकर
केवल खुश हुआ करते हैं।
ख़्वाब जो मिलकर देखे थे
अब सब पूरे लगते हैं।
मेरे यादों की बस्ती में
कुछ दोस्त रहा करते हैं।
गुलाल के रंगे वो चेहरे थे
रंग- बिरंगी बातें थी।
साथ साथ टीलों पर जाकर
महल बनाया करते थे।
अब महल रेत के ढह गए
ईंटों के महल बना बैठे।
इन ऊँचे- ऊँचे महलों में
उन बिन रहा करते हैं।
दोस्त बिन इस शौहरत में
अब, सपन अधूरे लगते हैं।
मेरे यादों की बस्ती में
कुछ दोस्त रहा करते हैं।
वो दोस्त नहीं वो दौलत है,
जो सब दौलत से महँगी है।
भले रहें हम महलों में
और
दौलत शौहरत की दुनिया में,
वो मेरे जीवन की आभा हैं
जीवन के हिस्से में आते हैं।
और सुनो….
मेरे यादों की बस्ती में
कुछ दोस्त रहा करते हैं।
नीरज “मनन”