“शब्दों के आलिंगन” से, पुस्तक मैने लिख डाली,
शब्दों को फूलों सा सजा, महक उठी है हर डाली।
“नीरज” सा खिलकर पानी में, छटा रूप की महकेगी,
शब्दों को पढ़कर मेरे अब, गुलशन में वो महकेगी।
शब्द- शब्द महकेगा तब, गुलशन की क्यारन में,
रोम-रोम महकेगा जैसे, साँसों के आलिंगन में।
शब्द मेरे पढ़ लोगी तो, हर शब्द ग़ज़ल बन जाएगा।
लब से तेरे छूकर के, हर शब्द लहर सा जाएगा।
सागर की उठती लहरों पर जब नौका सी लहराओगी
देख तुझे यूँ लहरों पर रोम- रोम लहराएगा।
शब्द-शब्द महकेगा तब ग़ज़लों के सुर आँगन में।
रोम-रोम महकेगा जैसे साँसों के आलिंगन में
रिश्तों की चाँदनी को अब आग़ोश में लेना होगा
बाहों को बाहों में भरकर आहों में जीना होगा।
पैमाना हाथों में लेकर जब तुम होठों से छू लोगी
हाथ पकड़ कर हाथों में बाहों में जब भर लोगी
शब्द शब्द महकेगा तब ग़ज़लों के सुर आँगन में
रोम रोम महकेगा जैसे साँसों के आलिंगन में।
तेरे चिनार से होठों पर, शबनम सा जीना होगा,
कंपकंपाते होठों पर, नाम मुझे सुनना होगा।
नाम लपेट होठों पर तुम, जब जीवन में आ जाओगी
शब्दों को बुन-बुनकर जब, जुलाहे सा बन जाओगी।
शब्द शब्द महकेगा तब ग़ज़लों के सुर आँगन में,
रोम-रोम महकेगा जैसे, साँसों के आलिंगन में।
शबनम की नन्ही बूँदें जब, पत्तों पर आ जाएँगी,
दरख़्त तले जब बाहों में, वो मेरे आ जाएगी।
चूम उसी की आँखों पर, वो शब्दों को दोहराऊँगा,
प्रेम तुम्हीं से करता हूँ, अब तुमसे कह ही जाऊँगा।
शब्द-शब्द महकेगा अब, आँखों के उस चुम्बन में,
रोम-रोम महकेगा जैसे साँसों के आलिंगन में
रंगीं सी इस दुनिया में, हर ख़्वाब रंगीनी होते है,
रंगबिरंगी-इंद्रधनुषी, नयनों संग वो सोते हैं।
तितली बन उड़ जाते जब वो, पलकों से टकराते हैं,
पकड़ कलम को नोक तले, वो काग़ज़ पर आ जाते हैं।
शब्द- शब्द महकता है, तब ग़ज़लों के सुर आँगन में,
रोम- रोम बहकता है, तब साँसों के आलिंगन में।
सागर की मँजधार तले, जब तूफ़ाँ घिर-घिर आएगा,
ऊँची- ऊँची लहरों संग, नौका को लहराएगा।
ठीक उसी पल बाहों में, हम-तुम यूँ खो जाएँगे,
जीवन के रंगीं सपनों संग, तूफ़ाँ को भूल जाएँगे।
शब्द- शब्द बहकेगा, तब इक दुजे के बाहों में,
रोम- रोम महकेगा जैसे, साँसों के आलिंगन में।
नींदों से होकर ख़्वाबों में, जब तुम मेरे बस जाओगी,
ज़ुल्फ़ हटा जब चेहरे को, क़रीब मेरे ले आओगी।
ठीक उसी क्षण बैठ कलम, काग़ज़ पर तुम आओगी,
शब्दों से आलिंगन कर, ग़ज़ल मेरी बन जाओगी।
शब्द-शब्द महकेगा तब, ग़ज़लों के सुर आँगन में,
रोम-रोम महकेगा जैसे, साँसों के आलिंगन में।
अरमानो के पंख लगा तुम दूर बहुत उड़ जाओगी
जब दूर हुए तो शब्दों में फ़िर मेरे तुम आ जाओगी।
शब्दों के आलिंगन करा अब याद तुझे मैं कर लूँगा,
कलम प्रेम की लिखकर मै चुम्बन काग़ज़ पर कर लूँगा
शब्द शब्द महकेगा तब ग़ज़लों के सुर आँगन में
रोम रोम महकेगा जैसे साँसों के आलिंगन में
रिश्तों के बहते श्रोतों से अंजुल भर जल पीना होगा,
शब्दों में प्रेम के श्रोतों से जीवन को अब जीना होगा।
मेरी रचनाएँ पढ़ करके इकरार प्यार का कर लेना,
धड़कन को धड़कन में समाकर प्यार मुझे तुम कर लेना।
शब्द- शब्द महकेगा तब ग़ज़लों के सुर आँगन में,
रोम-रोम महकेगा जैसे साँसों के आलिंगन में।
?????
Lovely