मनन’ के नमन को इस महफ़िल में, स्वीकार कर लो तुम।
मनन के शब्दों पर अब इश्क़ का , इजहार कर लो तुम।
कलम से शब्दों को आकार, देकर ग़ज़ल बनायी है,
ग़ज़ल को गा गाकर होठों से, अब इकरार कर लो तुम।

मुझे शायरी का तजुर्बा तो नहीं ‘मनन’,
मगर लोग कहते हैं,
मैं जो लिखता हूँ वो लाजवाब है।
मगर लोग कहते हैं,
मैं जो लिखता हूँ वो लाजवाब है।
मुझे पता है कि मेरे अल्फ़ाज़, बहुत कम बोलते हैं
मगर
पढ़ने वाले के दिल में, शोर सा कर देते हैं।
मगर
पढ़ने वाले के दिल में, शोर सा कर देते हैं।
अल्फ़ाज़ में तुम हो, या तुम पर अल्फ़ाज़ ,
पढ़ लो ये ग़ज़ल, लिखी है तुम्हारे लिए।
पढ़ लो ये ग़ज़ल, लिखी है तुम्हारे लिए।
जब बेपनाह इश्क़ होता है, दिल के अंदर।
तब इंसान ज़िंदा तो होता है,
‘मनन’ मगर किसी और के अंदर।
तब इंसान ज़िंदा तो होता है,
‘मनन’ मगर किसी और के अंदर।
तुम धड़कते रहा करो दिल के अंदर
ताक़ि मेरी नफ़्ज चलती रहे।
ताक़ि मेरी नफ़्ज चलती रहे।
एक ख्वाहिश थी, कुछ खूबसूरत सा पढ़ूँ।
ख़ुदा ने मेरी ख्वाहिश में, तुमको ही लिख दिया।
ख़ुदा ने मेरी ख्वाहिश में, तुमको ही लिख दिया।
मैं सावन का बहता बादल
आसमाँ में बिछुड़ गया हूँ।
जब से ‘मनन’ अलग हो गया
तब से मैं कुछ बिखर गया हुँ।
आसमाँ में बिछुड़ गया हूँ।
जब से ‘मनन’ अलग हो गया
तब से मैं कुछ बिखर गया हुँ।
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