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उफ़्फ़ दिसम्बर……!

हल्की हल्की गुलाबीसिहरती ठण्ड नेजैसे हीदिसम्बर के कंधे परअपना हाथ रखाकुछ कहानियाँ भी सिहर उठीबीते मौसम की। वो कहानियाँरोएँ रोएँ मेंरूमानी कर रही थी।सुबह के कोहरे में लिपटी हुईयादों के स्वेटर पहनेनज़र आयी फ़िर कुछ निशानियाँबीते गुजरे मौसम की। मखमली रज़ाई कामखमली अहसास थाइन कहानियों में।बदन को गुदगुदा दिया इन्होंनेरोएँ रोएँ में हलचल थीकुछ ठण्ड…

उस रोज़ दिवाली हो जाए जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ…।

तुम संग ख़ुशियों के मेले थे, वो दीप जले क्या गहरे थे।दीप की थाली थाम तभी, उजली आभा के चेहरे थे।ख़ुशियों को भरकर अंजुल में, तुम देहरी पर दीप जला जाओ।उस रोज़ दिवाली हो जाए, जिस रोज़ तुम मिलने आ जाओ। वो प्यार भरी सौग़ातों से , तुम प्यार की आभा करते थे।अधरों पर अधर…

आँखे

तुम कहते हो आँख है ये,कुछ शब्द इसी पर लिख जाओ,लिखते लिखते शब्दों को,वो प्यार गहराता दिखता है|तुम जैसी चाहत हो तो,आँखों की गहरायी में,झीलों के हंसों का जोड़ा,ख़्वाब संजोता दिखता है| तुम कहते हो झूठ हो तुम,ये अश्क़ नहीं है पानी है|हम पानी के अर्थ भी लिख देते,वो नीर हमें भी दिखता है |नीरज…

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